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श्री आवड़ जी महाराज रो छंद, दौहा।।


श्री आवड़ जी महाराज रो छंद  आम्बदान देवल।     

      ।। दौहा।।

 

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सात बेहनां सगतियां,
परंम् प्रकासण पाठ।
भ्रात महिरख नभ भमे ,
ऐकहि मूरत आठ।

      ।।छंद मत गयंद।।

आठ अठे सत आय इळापर, मेणळ मात मुणी ममताळी।
मामड़ चारण की ममता वण, आ अवतार इळा उजुवाळी।
मास मधू नवमी सुघ मांयड़, बावन नाम बणी विरदाळी।
आवड़ आद चंडी इळ ऊपर,सिंघ चढी सुरराय संभाळी ।(१)

मात भवानिय मेणळ माणिय, साय शिवाणिय आन संभाळी।
साख मदाणिय साय सुराणिय ,
वाक वखाणिय मां विरदाळी।
आव अंताळिय साद सुणे इळ ,
घात विडारण मां घंटियाळी।
आवड़ आद चंडी इळ ऊपर, सिंह चढी सुरराय संभाळी ।(२)

धा मन धाबळियाळ धजाबंद ,
धीर संभाळण मेर धजाळी।
काळ मिटाय हटाय अरी दळ , फाड़ फगाय फिदा फितुराळी।
साय सदानंद आंणद सारण, चारण चार चले चिरताळी।
आवड़ आद चंडी इळ ऊपर सिंह चढी सुरराय संभाळी।(३)

राकस मार रमे सुर राजण ,
जाळण काळ जपुं जमराळी।
भाव सुभाव भवा सुभ भासत, आवड़ तैमड़ आव अंताळी।
बाध बबां बळ पाक बबोंळण, राय तनोट रमें रखवाळी।
आवड़ आद चंडी इळ ऊपर सिंह चढी सुरराय संभाळी।(४)

देग पकाय खपावत देगड़ , खांड खगाय उडाय खिरजाळी।
आप अकास वणी संवळी इम ,  डग्ग पसार  उडे डमराळी।
अम्ब सदाय अदाय उपासत , आप रमो जग जोत उजाळी।
आवड़ आद चंडी इळ ऊपर सिंह चढी सुरराय संभाळी।(५)

        ।। छप्पय ।।

भव सारण भवराय, मामड़ जनमी ममताळी।
करुणा कर किरपाय , देव वडाळ डाढाळी।
हिंगलाज रथ हाक , शिवा वसी सिखराळी।
बावन पीठ बणांय , पुजिजे इळा परचाळी ।
अम्ब सदानंद इळ ऊपरां, आवड़ा अवतार लियो  ।
डारण राकस कज डोकरी , परम रो प्रकास कियो ।

आम्बदान जवाहरदान देवल पप्पसा आलमसर

*चारण कवि श्री दुला भाया काग*
*________भगत बापु_________*
*_______चीर झोंटाशे_______*

दरशन विना तरसे  दासी विठूल गोकुळना वासी ऐ *राग*

पंचाळी दीन पोकारे
वेंले सर पोगजो  वारे
तेथी वाला जीवडो त्रासे
जीवन मारा चीर झोंटाशे टेक

सत्यने बंधने पांडवो बांध्या
आईया बेठा पति आज रे हे
भीषम जेवा  भाळतां मोरी
लांलजी  जाशे  लाज  पचाळी (१)

दुरजोधने आगना  दीधी
थिर हयुं नव थाय  रे हे
आ घडिये प्रभु चीर अमारां
झोटाशे जादवराय  पंचाळी  (२)

रुठो दुशासन  रोळशे वाला
घ्रपतीने घरार   रे हे
अम तणु मारा आतम आमा
कोई नथी किरतार  पंचाळी (३)

आ वखते  उचो आभ छे  वाला
धर नीची गिरिधार  रे  हे
द्ररकाथी तमे  घ्रोडजो मारा
अबळाना आधार पंचाळी (४)

धाह सुणी हरि घ्रूपतीजीनी
आपियां चीर अनेक रे  हे
कानजी  काळा  *काग* तणी ऐम
त्रिकम राखजो  टेक  पंचाळी  (५)

*पद्मवीभुशण श्री दुला भाया काग*
*काग बापु*

भुल सुधारी ने वासवु 

*भरतभा  गढवी*

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*।।छंद भुजंगी।।*
निमो देवला मात 'चामंड' नांमी।
कळा सोळही धारियां रुद्रकांमी।
तुंही 'आवड़ा' 'खूबड़ा' आद आई।
प्रथी ताहरा पार संभू न पाई।।१।।

तुंही 'नागवी' 'राजवी' देव 'सैणी'।
देवी 'चाळका' बाळका रिद्ध देणी।
तैंही साह री नाव दरियाव तारी।
देवी भांजिया भीम रा लोह भारी।।२।।

देवी लाय तैं भीम ने राज लाधौ।
तैंही खप्परां घात हरभम्म खाधौ।
आई जादमं पीड़ गम्मी अपूठी।
तुंही सेवगां सेवियाँ लाख तूठी।।३।।

सबै चारणी मात नवलाख सारी।
धरा दीजिये दान में सेव धारी।
दखै रांण 'वीसौ' इसी आरदासा।
अबै मात पूरौ 'चिमन्नेस' आसा।।४।।
*~~कविया चिमनजी*  *"सोढायण"*


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