Karni Mata DOHA, करणी माता
दोहा
दयालु कर राखों दया,हरणी विघ्न हमेश।
तीन लोक भव तारणी, काटें करोङ क्लेश।।१
भुवा कह आयो भाटों,आंटो कर दी आप।
बाल गुथता कर बढिया,जद करणी जग जाप।।२
दो रोटी फोज रंजा,शेखे बहिन सहाय।
काटी जेल मुल्तान की,सवळी रूप सजाय।।३
बाल गिरधर री बिनती,तारण वाली तार।
तोय समा करणी तुहीं,अवनी पार उतार।।४
*****श्री करणी शरणम्*****
(गिरधारी बिठू,सींथल)
माड़ धरा री मावड़ी आवड़ आईनाथ
माड़ेची मोटी मैया सदा निभावे साथ।
पावन धरा प्रमेशरी माड़ भूमि है माय
सगती अठे सर्वेशरी जनमी है जोगमाय।।
प्रातः उठ परभात री समरो सदाय सगत।
विघन टाळण वीश हथी भेळी रेवे भगत।।
(कवि राजन झणकली)कविराजा करनीदान जी कविया रचित महान ग्रंथ "सूरजप्रकास"
*।।छंद-मछिका।।*
एहड़ा दळ अथाह, सूरवीर सूर साह।
भूप हालियौ अभंग, जोम पूर काजि जंग।।
घंट गै घमंक घोर, जंगमांण नाळ जोर।
भूम धूज थाट भार, कोम कंध जै प्रकार।।
धूंधळे रजैस धोम, वैल माग ढंक व्यौम।
. . . . . . . . . . . . . . . . .।।
तूटये नदी तटाक, हींस वाजि वीर हाक।
पेखि एम थाट पूर, साजिया मुकाम 'सूर'।।
दोय एक वीच दीह, आवियौ खड़े अबीह।
औदके पवै अढ़ार, भारही अढ़ार भार।।
जांमि लोक भाजि जाय, थाट नैर नास थाय।
लूटजै दरब्ब लाख, संच माल भूम साख।।
ऊधमंत देस एम, ज्याग दक्ष वीर जेम।
तांम थाट पूर ताव, रीस धारि सोढ़ राव।।
वाजतां त्रंबाळ वीर, सांमुहौ आयौ सधीर।
वीर ते त्रंबाळ वाज, गोम धोम बोम गाज।।
ऊफणै कमंध ईस, रौद्र रूप जोग रीस।
आरबां दगै अपार, काळ रूप अंधकार।।
ऊछळै गोळा अथाह, वूठ बांण बांण वाह।
'सूर' तांम रूप सोह, हाकलै भड़ां अबोह।।
मारुवां तुरंग मेलि, चाहुवांण वीर चेलि।
घाट सेल वार घोळ, हूंचकै गजां हरोळ।।
'सूररांव' हाथ सेल, उछळे रतां उझेळ।
रंग माट घाट रत्र, ते भरै चौसट्ठ पत्र।।
तोय ज्यूं पीवंत तांम, ज्वाळ त्रक्ख मेट जांम।
झाळ रूप खाग झाट, घूमरां कटक्क घाट।।
ऊछळंत हाथ पाव, घाट सीस दाव घाव।
मंड ईस रुंडमाळ, वीर नित्त विक्कराळ।।
रीझवै हसै रिखेस, देखवै रजै दिनेस।
ऊमि लोह धार इंद, वारगां वरंत व्यंद।।
सूरवीर दोइ साथ, बोळ चोळ लूथ बाथ।
वावरंत रूप वीज, खंजरां कटार खीज।।
काळरूप झाळ क्रोध, जेठियां सरूप जोध।
डोरियां करंत डाव, घाटमें दुसार घाव।।
देवड़ा मुकत्त दाम, तूटिया अनेक तांम।
'सूररा' केईक सूर, रूक घाइ मग्गरूर।।
वांकड़ा कमंध वीर, सांकड़ा आया सधीर।
तांम सोढि देखि ताव, पालटै कुरंग पाव।।
त्रंबि वाजि भेर तूर, 'सूर' जैत कीधि सूर।
लूटिवै सिरोह लीध, कोट में मुकाम कीध।।*।।कवित्त।।*
राव सहित रांणियां, भ्रमै वनि वनि चित भंगं।
सुवै राव सुरतांण, पथर साथरां पिलंगं।
पबै तरां पालणा, रुदन बाळक मछरीकां।
सुण चमकै सुरतांण, हियै सालै दूख हीकां।
त्रिय थकित महल चढ़तां तिकै, तिकै चढ़े गिर तरवरां।शरण रख ताहरै सुरांराया !!
कवि पदमजी बारहठ करङाला !!
सदा वीदगाँ बाहरू रहै नित बीस हथ,
देव ऊबारणी दैत दंडी!
धिराणी नामरी राखो दिल धारणां,
चारणां सदा रह साय चंडी !!करनला निभाज्यौ आपरा निधाकर,
कऴू री बार बहै बखत खोटी !
सेवगाँ शीष पर राखज्यो सदाई,
मेहाई तूझ धणियाप मोटी !!मात तव छोरवां रा गुना माफ कर,
थेट सूं रहै कवि दास थारा !
अम्बिका अरज सुण दुष्ट आरोगणी,
सारज्यो जोगणी काम सारा !!टाबराँ तणां तो सरब दुख टाऴज्यो,
गुणांनिध राज नै वैद गाया !!
पदम कहै मात मो ऊपरै कृपाकर,
शरण रख ताहरै सुरांराया !!पदमदानजी बारहठ करडाऴा !!
श्रीहिंगऴाजदानजी जागावत कृत सवैया
!!मातेश्वरी रा मोटा भगत, योगमाया श्री इंन्द्रबाईसा रा मातुल, चारणवास रा निवासी, कविया हिंगऴाजदान जी रा स्नैहपात्र, सदसाहित रा सृजक सवैया विधा री हटोटी मे सिध्दहस्थ कवि रा दो प्रातः स्मर्णिय सवैया, जिणमें झाझ मे डूबते झगङू री, सगती री सहायता रो सांगोपांग सुन्दर वर्णन है !!
बारि बरोब्बर बारि चढ्यो है,
बढ्यो है बयारि तुफांन महा !
भंगूर में पोत भ्रमै गत होत,
मलाह कलाहु चलात रहा !
है न हमैं अवलम्ब अबैं,
जगदम्ब करंत विलम्ब कहा !
भय हरनी बरनी कवि जे,
करनी तरनी यह त्यारो हहा !!गोब्यंद औ गजराज गति,
श्रुति साह आवाज सुनि सुरराई !
व्हां वह आतुर दौरेऽरू ह्यां यह,
गाय दुहन्त भुजा ही बढाई !
पौन के गौन ते पाथ प्रवाह,
झुकन्त श्रीहाथ पै नाव चढाई !
तीर धरी कर नीर अजै पुर,
क्षीर सुनीर की सांच दृढाई !!राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर !!
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