श्री राम सुयश दोहावली भाग 3
जनम लियो जद जगत में , लायक चारों लाल ।।
मन हरखावे मेदनी , बज त्रंबागळ ताल ।।31।
गीत राग शुभ गावणो , अवध घणो उछरंग ।।
वाजा छतीस वाजिया , इ सुर ताल लय संग ।।32।।
दशरथ रा दरबार में , गावे गायक गीत ।।
दान मान सब देवणो , राज तणी आ रीत ।।33।।
तिण पल विप्र तेड़ाविया , दिन चढ़ते घटी दोय ।।
पांच अंग पंचांग रा , जोशी विध कर जोय ।।34।।
जोशी पोथी जोवतां , हरख वधे मन हेत ।।
दुंणी छोळ दरियाव ज्यूँ , दशरथ रो मन देत ।।35।।
कौशल्या रघुवर कुंवर , कैकय भरत कुमार ।।
शत्रुघ्न लखन सुमित्रा सुत , चावा नांमी चार ।।36।।
भरत'र शत्रुघन भावता , सुत भूपत रे चार ।।
राम लखन सा राजवी , भूमि उतारण भार ।।37।।
शेष रूप लखमन सही , राम श्रीकंत रूप ।।
भ्राता शत्रुघन भरत सा , अनमी चार अनूप ।।38।।
कौसला सुमित्र कैकई , मन हरखावे मात ।।
उठत परत चलत उते , चारों लाल सुहात ।।39।।
भूपत पढ़वा भेजिया , भलो रखे मन भाव ।।
विद्या गुण सीखे वळे , चित्त में रखे चाव ।।40।।
दशरथ रा दरबार में , एक दिन कौशिक आय ।।
भेजो मों संग भूपति , सुत दुय करण सहाय ।।41।।
सघरे ऋषि मिल साथ में , करत हवन शुभ काज ।।
उत्त विघन कज आत हैं , दानव राखे दाज ।।42।।
करवा विघन असुर कई , आवे तहां अपार ।।
आप रामजी आयके , क्षत्री करो संहार ।।43।।
कर शंका दशरथ कही , विप्रवर सुणियो वात ।।
मायावी दानव महा , सो मम मन सकुचात ।।44।।
रिषी कहे सुण राजवी , कीजै सोच न कांय ।।
सुत थारा हैं सांमरथ , क्षत्रपति करण सहाय ।।45।।
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