आसन अदभुत ओपता ,सहविध दिया सजाय ।।
मघवा रे महलात ज्यूँ , सुन्दर भवन सुहाय ।।76।।
मंडप रे बिच मेलियो , उण पल तखत अनूप ।।
धरयो जिण पर शिव धनु , भल भल निरखे भूप ।।77।।
अनमी सगळा आयके , सबे वधारी शान ।।
देवां वास दिपावतो , मंडप दिसे महान ।।78।।
पिनाक शिव धनु प्रबळ , मेल्यो संभा मांय ।।
चाप जो धनु चढाय दे , भूप जनक मन भाय ।79।।
कही बात कर जोड़के , साची जनक सुजांण ।।
नरपति वचन निभावजो , तोड़ धनुष झट तांण।।80।।
तोड़ै धनुष कर टुकड़ा , नामी जिका नरेश ।।
सो नर परणें सीय नें , ओही जनक आदेश ।।81।।
सगळी संभा सांभळे , हियै रही हरखाय ।।
भल्ल पारखां भूप रां , जद आजें हो जाय ।।82।।
रौष करे मन राजवी , मुंछां रहया मरोड़ ।।
पिनाक तौड़ द्यां पलक में , हद जिण लागी हौड़ ।।83।।
जोशीला नर कै जबर , भला मुंछाळा भूप ।।
हरखै रहेया हिय में , अधपत घणा अनूप ।।84।।
आयां वारी ऊठिया , रोशीला कै राव ।।
छत्रपत बांहुं चाड़ेयां , तुरत मुंछां दे ताव ।।85।।
तोड़यो किणविध तुटसी , हल्यो न अंगुल हेक ।।
शरमावै सोय छत्रपति , तजै बैठा नर टैक ।।86।।
विकल मन विदेही हुओ , जनक ओ प्रसंग जोय ।।
क्षत्री न रह्या संसार में , सूरा खपग्या सोय ।।87।।
ओही पारख आदरी , भयी महा मम भूल ।।
छत्रियां अब तो सांभळो , दुर्बळ व्हे गया डुल ।।88।।
बळहीण छत्रिय बापड़ा , सबै हुआ सिरदार ।।
विदेही ईम विचारियो , अब नह कछु औधार ।।89।।
लखमण सुण कहने लगै , छत्रि बीन नह संसार ।।
विदैही शबद विचार्यां , आप युं करो उच्चार ।।90।।
श्री राम सुयश दोहावली भाग 7
समझाय दिये सान में , उत लखमण को ऐम ।।
धीरज मन में धारियै , नह तोड़ो तुम नैम ।।91।।
जद उणपल यों जोवियो ,इ रिषी सांमें राम ।।
हुकम आपरो होवतां , कठिन नहीं ओ काम ।।92।।
दी आज्ञा गुरदेवनें , रखो ढील नह राम ।।
पिनाक तोड़ो पलक में , (ओ) कैशव तेरो काम ।।93।।
रिषी दी आज्ञा राम को , झट जावो जगदीश ।।
तोड़ो धनु दशरथ तणा , अमिट मोय आशीष ।।94।।
ईम सुण राघव उठिया , प्रथम गुरू लग पाय ।।
आज्ञा दिन्हीं आप तो , थट मुर टुकड़ा थाय ।।95।।
हुवै पदम चक्र हाथ में , शंख गदा भल सोय ।।
अदृश्य रूप आपको , जद सिय हरखै जोय ।।96।।
शैष पियाळां सळवळै , धरा रही सब धूज ।।
भांण थभ्यो रथ भाळवा , परगट अवनी पूंज ।।97।।
कैशव मन मुसकाय के , चले गयन्द गत चाल ।।
शंका कर रह्या छत्रपति , हुओ अजब मन हाल ।।98।।
विध छोटी आ बाळवय , अब हैं भयो अजाण ।।
अजब धनुष ओ ऐक ही , जग में अदभुत जांण ।।99।।
हरि जद लागेया हंसने , मन्द अधर मुसकाय ।।
तिण पळ रामहि तोड़वा , धनुष रे ढिग धाय ।।100।।
दायें कर सूं जोर कर , बाम कर धनुष बढाय ।।
खींच प्रतंचा खांत सूं , चट्ट दी राम चढाय ।।101।।
जद नह तांणी जौर सूं , (पण) टुकड़ा हुआ ज तीन ।।
सुर गण मानव सघळै , कुसूम वरसा कीन ।।102।।
जो धनुष तोड़े जिका , वो सीता रो सांम ।।
हरिवर बाजी हाथ में , राखी हेक हि राम ।।103।।
ऐक टुक आसमान में , धरणी दुजो धराय ।।
तीजो झट्ट पयाळ में , जिकै तुटन्तो जाय ।।104।।
भूप लज्जित सबे भये , हिय सह जन हरखाय ।।
आज जनकपुर आंगणें , गायन दियै गवाय ।।105।।
श्री राम सुयश दोहावली भाग 8
धनुष तूटत ध्रूजी धरा , गगन सबद गणणाट ।।
करने लागै कोतुहल , थळ नभ जळ के थाट ।।106।।
साद फरसधर सांभळै , तुटयां धनुष तिकाह ।।
आयो कुंण नर ईळ में , जनम हि धरै जिकाह ।।107।।
जमदग्न सुत आयो जदै , लम्बी फरसी लैह ।।
दैखत लगै डरावणो , क्रोधाळ रूप करैह ।।108।।
अति रूप विकराळ उत , उणपल फरसू आय ।।
तोड़यो धनुष शिव तणो , वो नर दियो वताय ।।109।।
कर विनय रघुवर कही , आप न होय अधीर ।।
फरसधर नांहि फायदो , धारो थां मन धीर ।।110।।
धनुष तूटत ध्रूजी धरा , गगन सबद गणणाट ।।
करने लागै कोतुहल , थळ नभ जळ के थाट ।।111।।
साद फरसधर सांभळै , तुटयां धनुष तिकाह ।।
आयो कुंण नर ईळ में , जनम हि धरै जिकाह ।।112।।
जमदग्न सुत आयो जदै , लम्बी फरसी लैह ।।
दैखत लगै डरावणो , क्रोधाळ रूप करैह ।।113।।
अति रूप विकराळ उत , उणपल फरसू आय ।।
तोड़यो धनुष शिव तणो , वो नर दियो वताय ।।114।।
कर विनय रघुवर कही , आप न होय अधीर ।।
फरसधर नांहि फायदो , धारो थां मन धीर ।।115।।
कही फरसधर राम को , बालक कर नह बात ।।
महादेव को हैं महा , वसुधा धनु विख्यात ।।116।।
वार इक्कीस वसु तणा , छत्रिय लिया संहार ।।
अब कुंण आयो ऐहड़ो, इळा भूप अवतार ।।117।।
कठोर वचन परशु कहत , सुण ध्रूजै नर सोय ।।
अबखी वैळा आवियां , हलचल सघळां होय ।।118।।
सब क्षत्रियन कै उण समै , जीभे ताळां जांण ।।
नरां हिये सूझत नहीं , उत्तर रो अवसांण ।।119।।
लागे देखण लोग हैं , आंमी सांमी आज ।।
इ राजी परशुरामजी , कहो हुवे किंण काज ।।120।।
श्री राम सुयश दोहावली भाग 9
ध्रुजै जिका तव धाकसूं , वो नहीं क्षत्री वीर ।।
बात सुणो तुम विप्रवर , धरो परशु अब धीर ।।121।।
दीन धेन विप्र देवता , पूजनीय एह परम ।।
सदा ऐही संसार में , कहावै वीर करम ।।122।।
करै क्रोध परशु कही , ऐही बाळ अजान ।।
तूं नांही जानत तिका , परथम मों पहचान ।।123।।
राम समझाय रीत से , सो मम तात समान ।।
कित्त धनुष कारण कियो , आप रौष हिय आन ।।124।।
अति न बोल बालक अबै , न समझयो नादान ।।
शिव को धनुष संसार में , जिका सवायो जान ।।125।।
लखमन जद कहने लगै , करो नहीं तुम क्रोध ।।
दैवूं ल्हाय म्हें दूसरो , जिका धनुष वड जोध ।।126।।
अल्प उमर बालक असो , बोल नहीं तूं बोल ।।
अधक सवायो हैं अजब , ओही धनुष अमोल ।।127।।
कर जौड़े रघुवर कही , रिषीवर करो न रौष ।।
हाथ लगात तुटो हमें , दूजां रो नह दौष ।।128।।
कोमल वाणी राम कहि , परशु आयो पास ।।
हियै लगायो जद हरी , दयानिधी इत दास ।।129।।
ग्रहै बांह तोड़े गरव , लिय हरि गळे लगाय ।।
उत्त परशु अवधेस के , पड़यो झटके पांय ।।130।।
वाजया ढौल वधांमणा , गायक गावत गीत।।
हरख भयो सबे हिय में , राम नेह की रीत ।।131
विप्र उच्चारण वेद को , करे मन हरख कियांह ।।
छंदां दोहां छोळ सूं , हरखे सकळ हियाह ।।132।।
गंधर्व किन्नर देव गण , मन सूं खुशी मनाय ।।
इम अवसर शुभ आवियां , हिय दूंणो हरखाय ।।134।।
सिय सहेलियां संग में , मन ही मन मुसकाय ।।
भल मिळयो मन भावतो , राम जिसो वरराय ।।135।।
श्री राम सुयश दोहावली भाग 10
गायक जन शुभ गान किय , (अर) शुकवि बोलया छन्द ।।
वेद विप्र जद वांचतां , उर भयहू आनन्द ।।136।।
निरख रही सब नारियां , हरखे मंडप हाल ।।
कहत रही सब सीय को , कन्त तुज्झ किरपाल ।।137।।
मन ही मन मुस्कात हैं , सुणे बात या सीय ।।
भल मोरे वड भाग को , कहे वसु वंदनीय ।।138।।
जनक कही तब जानहू ,भूप दासियाँ भेज ।।
सिया ल्हाय इत चाव सूं , जानत करो न जेज ।।139।।
जद मंडप बिच जानकी , तुरन्त लिध तैड़ाय ।।
जय जयकारो जनकपुर , थरू चहूंदिश थाय ।।140।।
गंधर्व किन्नर देव गण , सुर नर मुनिवर सोय ।।
कौशलसुत रे कारणै , हरख सवायो होय ।।141।।
भूप जनक रे जद भयो , अधक हरख हिय आज ।।
परम सीय के राम पति , सुर्य वंश सिरताज ।।142।।
पुष्प हार ले प्रेम रो , हिये सिया हरखाय ।।
पति राम त्रेय लोक पति, परम भाग सूं पाय ।।143।।
मुहरत दिखायो महपति , जनक विप्रां कर जांण ।।
भल विध पोथी भाळजो शुभ पळ देख सुजाण ।।144।।
गुणांक विप्र गिणाविया , परम वार तिथ पल्ल ।।
पुत्री भल्ल परणावियै , ओही समय अव्वल ।।145।।
विदेही ईम विचारियो , जनक वात ओ जांण ।।
तनय चार दशरथ तणा , सुन्दर बोहो सवियांण ।।146।।
कुसधज सूं जनक कही , भली वात सुण भ्रात ।।
दो दो पुत्री हम दुय के ,हैं यह बात हयात ।।147।।
उभय तनया अम्हतणी , दोय तिहारी दैख ।।
चार परणसी साथ में ,लिखिया विधिना लैख ।।148।।
जो तुम उत्तम जानहू , जनक करो भल जोय ।।
आजै खुशी हिरदै अति , हद मों भ्राता होय ।।149।।
सुन्दर अति दशरथ सुतन ,सबही कुंवर सुजान ।।
चारों सुता सरूप हैं , वर चारूं गुणवान ।।150।।
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