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श्रीराम सुयश दोहावली (भाग 6) Ramayan doha Chaupai, Ramayan Ke Dohe Chaupai, Ramayan DOHA,

Karni Mata Chirja Lyrics करणी माता चिरजा लिरिक्स


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रामचरितमानस के 10 चमत्कारी दोहे,नवरात्रि में रामचरित मानस के दोहे, चौपाई , भगवान राम की शरण प्राप्ति हेतु dohe, 





श्रीराम सुयश दोहावली (भाग 6)


आसन अदभुत ओपता ,सहविध दिया सजाय ।।
मघवा रे महलात ज्यूँ , सुन्दर भवन सुहाय ।।76।।

मंडप रे बिच मेलियो , उण पल तखत अनूप ।।
धरयो जिण पर शिव धनु , भल भल निरखे भूप ।।77।।

अनमी सगळा आयके , सबे वधारी शान ।।
देवां वास दिपावतो , मंडप दिसे महान ।।78।।

पिनाक शिव धनु प्रबळ , मेल्यो संभा मांय ।।
चाप जो धनु चढाय दे , भूप जनक मन भाय ।79।।

कही बात कर जोड़के , साची जनक सुजांण ।।
नरपति वचन निभावजो , तोड़ धनुष झट तांण।।80।।

तोड़ै धनुष कर टुकड़ा , नामी जिका नरेश ।।
सो नर परणें सीय नें , ओही जनक आदेश ।।81।।

सगळी संभा सांभळे , हियै रही हरखाय ।।
भल्ल पारखां भूप रां , जद आजें हो जाय ।।82।।

रौष करे मन राजवी , मुंछां रहया मरोड़ ।।
पिनाक तौड़ द्यां पलक में , हद जिण लागी हौड़ ।।83।।

जोशीला नर कै जबर , भला मुंछाळा भूप ।।
हरखै रहेया हिय में , अधपत घणा अनूप ।।84।।

आयां वारी ऊठिया , रोशीला कै राव ।।
छत्रपत बांहुं चाड़ेयां , तुरत मुंछां दे ताव ।।85।।

तोड़यो किणविध तुटसी , हल्यो न अंगुल हेक ।।
शरमावै सोय छत्रपति , तजै बैठा नर टैक ।।86।।

विकल मन विदेही हुओ , जनक ओ प्रसंग जोय ।।
क्षत्री न रह्या संसार में , सूरा खपग्या सोय ।।87।।

ओही पारख आदरी , भयी महा मम भूल ।।
छत्रियां अब तो सांभळो , दुर्बळ व्हे गया डुल ।।88।।

बळहीण छत्रिय बापड़ा , सबै हुआ सिरदार ।।
विदेही ईम विचारियो , अब नह कछु औधार ।।89।।

लखमण सुण कहने लगै , छत्रि बीन नह संसार ।।
विदैही शबद विचार्यां , आप युं करो उच्चार ।।90।।
श्री राम सुयश दोहावली भाग 7

समझाय दिये सान में , उत लखमण को ऐम ।।
धीरज मन में धारियै , नह तोड़ो तुम नैम ।।91।।

जद उणपल यों जोवियो ,इ रिषी सांमें राम ।।
हुकम आपरो होवतां , कठिन नहीं ओ काम ।।92।।

दी आज्ञा गुरदेवनें , रखो ढील नह राम ।।
पिनाक तोड़ो पलक में , (ओ) कैशव तेरो काम ।।93।।

रिषी दी आज्ञा राम को , झट जावो जगदीश ।।
तोड़ो धनु दशरथ तणा , अमिट मोय आशीष ।।94।।

ईम सुण राघव उठिया , प्रथम गुरू लग पाय ।।
आज्ञा दिन्हीं आप तो , थट मुर टुकड़ा थाय ।।95।।

हुवै पदम चक्र हाथ में , शंख गदा भल सोय ।।
अदृश्य रूप  आपको , जद सिय हरखै जोय ।।96।।

शैष पियाळां सळवळै , धरा रही सब धूज ।।
भांण थभ्यो रथ भाळवा , परगट अवनी पूंज ।।97।।

कैशव मन मुसकाय के , चले गयन्द गत चाल ।।
शंका कर रह्या छत्रपति , हुओ अजब मन हाल ।।98।।

विध छोटी आ बाळवय , अब हैं भयो अजाण ।।
अजब धनुष ओ ऐक ही , जग में अदभुत जांण ।।99।।

हरि जद लागेया हंसने , मन्द अधर मुसकाय ।।
तिण पळ रामहि तोड़वा , धनुष रे ढिग धाय ।।100।।

दायें कर सूं जोर कर , बाम कर धनुष बढाय ।।
खींच प्रतंचा खांत सूं , चट्ट दी राम चढाय ।।101।।

जद नह तांणी जौर सूं , (पण) टुकड़ा हुआ ज तीन ।।
सुर गण मानव सघळै , कुसूम वरसा कीन ।।102।।

जो धनुष तोड़े जिका , वो सीता रो सांम ।।
हरिवर बाजी हाथ में , राखी हेक हि राम ।।103।।

ऐक टुक आसमान में , धरणी दुजो धराय ।।
तीजो झट्ट पयाळ में , जिकै तुटन्तो जाय ।।104।।

भूप लज्जित सबे भये , हिय सह जन हरखाय ।।
आज जनकपुर आंगणें , गायन दियै गवाय ।।105।।
श्री राम सुयश दोहावली भाग 8

धनुष तूटत ध्रूजी धरा , गगन सबद गणणाट ।।
करने लागै कोतुहल , थळ नभ जळ के थाट ।।106।।

साद फरसधर सांभळै , तुटयां धनुष तिकाह ।।
आयो कुंण नर ईळ में , जनम हि धरै जिकाह ।।107।।

जमदग्न सुत आयो जदै , लम्बी फरसी लैह ।।
दैखत लगै डरावणो , क्रोधाळ रूप करैह ।।108।।

अति रूप विकराळ उत , उणपल फरसू आय ।।
तोड़यो धनुष शिव तणो , वो नर दियो वताय ।।109।।

कर विनय रघुवर कही , आप न होय अधीर ।।
फरसधर नांहि फायदो , धारो थां मन धीर ।।110।।

धनुष तूटत ध्रूजी धरा , गगन सबद गणणाट ।।
करने लागै कोतुहल , थळ नभ जळ के थाट ।।111।।

साद फरसधर सांभळै , तुटयां धनुष तिकाह ।।
आयो कुंण नर ईळ में , जनम हि धरै जिकाह ।।112।।

जमदग्न सुत आयो जदै , लम्बी फरसी लैह ।।
दैखत लगै डरावणो , क्रोधाळ रूप करैह ।।113।।

अति रूप विकराळ उत , उणपल फरसू आय ।।
तोड़यो धनुष शिव तणो , वो नर दियो वताय ।।114।।

कर विनय रघुवर कही , आप न होय अधीर ।।
फरसधर नांहि फायदो , धारो थां मन धीर ।।115।।

कही फरसधर राम को , बालक कर नह बात ।।
महादेव को हैं महा , वसुधा धनु विख्यात ।।116।।

 वार इक्कीस वसु तणा , छत्रिय लिया संहार ।।
अब कुंण आयो ऐहड़ो, इळा भूप अवतार ।।117।।

कठोर वचन परशु कहत , सुण ध्रूजै नर सोय ।।
अबखी वैळा आवियां , हलचल सघळां होय ।।118।।

सब क्षत्रियन कै उण समै , जीभे ताळां जांण ।।
नरां हिये सूझत नहीं , उत्तर रो अवसांण ।।119।।

लागे देखण लोग हैं , आंमी सांमी आज ।।
इ राजी परशुरामजी , कहो हुवे किंण काज ।।120।।
श्री राम सुयश दोहावली भाग 9

ध्रुजै जिका तव धाकसूं , वो नहीं क्षत्री वीर ।।
बात सुणो तुम विप्रवर , धरो परशु अब धीर ।।121।।

दीन धेन विप्र देवता , पूजनीय एह परम ।।
सदा ऐही संसार में , कहावै वीर करम ।।122।।

करै क्रोध परशु कही , ऐही बाळ अजान ।।
तूं नांही जानत तिका , परथम मों पहचान ।।123।।

राम समझाय रीत से , सो मम तात समान ।।
कित्त धनुष कारण कियो , आप रौष हिय आन ।।124।।

अति न बोल बालक अबै , न समझयो नादान ।।
शिव को धनुष संसार में , जिका सवायो जान ।।125।।

लखमन जद कहने लगै , करो नहीं तुम क्रोध ।।
दैवूं ल्हाय म्हें दूसरो , जिका धनुष वड जोध ।।126।।

अल्प उमर बालक असो , बोल नहीं तूं बोल ।।
अधक सवायो हैं अजब , ओही धनुष अमोल ।।127।।

कर जौड़े रघुवर कही , रिषीवर करो न रौष ।।
हाथ लगात तुटो हमें , दूजां रो नह दौष ।।128।।

कोमल वाणी राम कहि , परशु आयो पास ।।
हियै लगायो जद हरी , दयानिधी इत दास ।।129।।

ग्रहै बांह तोड़े गरव  , लिय हरि गळे लगाय ।।
उत्त परशु अवधेस के , पड़यो झटके पांय  ।।130।।

वाजया ढौल वधांमणा , गायक गावत गीत।।
हरख भयो सबे हिय में , राम नेह की रीत ।।131

विप्र उच्चारण वेद को , करे मन हरख कियांह ।।
छंदां दोहां छोळ सूं , हरखे सकळ हियाह ।।132।।

गंधर्व किन्नर देव गण , मन सूं खुशी मनाय ।।
इम अवसर शुभ आवियां , हिय दूंणो हरखाय ।।134।।

सिय सहेलियां संग में , मन ही मन मुसकाय ।।
भल मिळयो मन भावतो , राम जिसो वरराय ।।135।।
श्री राम सुयश दोहावली भाग 10
 
 गायक जन शुभ गान किय , (अर) शुकवि बोलया छन्द ।।
वेद विप्र जद वांचतां , उर भयहू आनन्द  ।।136।।

निरख रही सब नारियां , हरखे मंडप हाल ।।
कहत रही सब सीय को , कन्त तुज्झ किरपाल ।।137।।

मन ही मन मुस्कात हैं ,  सुणे बात या सीय ।।
भल मोरे वड भाग को ,  कहे  वसु वंदनीय ।।138।।

जनक कही तब जानहू ,भूप  दासियाँ भेज ।।
सिया ल्हाय इत चाव सूं ,  जानत करो न जेज ।।139।।

जद मंडप बिच जानकी , तुरन्त लिध तैड़ाय ।।
जय जयकारो जनकपुर , थरू चहूंदिश थाय ।।140।।

गंधर्व किन्नर देव गण , सुर नर मुनिवर सोय ।।
कौशलसुत रे कारणै , हरख सवायो होय ।।141।।

भूप जनक रे जद भयो , अधक हरख हिय आज ।।
परम सीय के राम पति , सुर्य वंश सिरताज ।।142।।

पुष्प हार ले प्रेम रो , हिये सिया हरखाय ।। 
पति राम त्रेय लोक पति, परम भाग सूं पाय ।।143।।

मुहरत  दिखायो महपति , जनक विप्रां कर जांण ।।
भल विध पोथी भाळजो शुभ पळ देख सुजाण ।।144।।

गुणांक विप्र गिणाविया , परम वार तिथ पल्ल ।।
पुत्री भल्ल परणावियै  , ओही समय अव्वल ।।145।।

विदेही ईम विचारियो , जनक वात ओ जांण ।।
तनय चार दशरथ तणा , सुन्दर बोहो सवियांण ।।146।।

कुसधज सूं जनक कही , भली वात सुण भ्रात ।।
दो दो पुत्री हम  दुय के ,हैं यह बात हयात ।।147।।

उभय तनया अम्हतणी , दोय तिहारी दैख ।।
चार परणसी साथ में ,लिखिया विधिना लैख ।।148।।

जो तुम उत्तम जानहू , जनक करो भल जोय ।।
आजै खुशी हिरदै अति , हद मों भ्राता होय ।।149।।

सुन्दर अति दशरथ सुतन ,सबही कुंवर सुजान ।।
चारों सुता सरूप हैं , वर चारूं गुणवान ।।150।।

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