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श्री राम सुयश दोहावली (भाग 07),Ramayan doha Chaupai, में रामचरित मानस के दोहे, चौपाई , भगवान राम की शरण प्राप्ति हेतु dohe,




श्री राम सुयश दोहावली (भाग 11)


                 


 


शुभ पळ जोशी शोधके , देत लिखे दिखलाय ।।
अवधपुरी सूं उण दिवस , इत जान भल्ल आय ।।151।।

दिन उत्तम उत्तम घड़ी , पळ उत्तम परमांण ।।
अवधपुरी सूं आवसी , जान जिका दिन जांण ।।152।।

बात सुणे इम बोलियो , जनक विदेही जान ।।
झट विप्रवर अब जावणो , मों तणो रक्ख मान ।।153।।

जनक कहे सो जानिके , लीजै लगन लिखाय ।।
सदानंद गुर साथ में , जाणो हुय सो जाय ।।154।।

सहविध हय दळ शोभतो , (अरू), लिया संग में लोग ।।
चित हरखावे चालिया , शुभ अवसर संजोग ।।155।।

सगळा हिलमिळ चाव सूं , जिका अवध दिश जाय ।।
सगा दोय धिन सारखा , कुळ भूषण कहलाय ।।156।।

अवधपुरी जद आविया , सदानंद कर चाव ।।
छवि निरखै सोयांमणी , भयो खुशी मन भाव ।।157।।

आय प्रोळ ढिग अवध में , दीन्हो शुभ संदेश ।।
दशरथ जी झट दीजियो , आवण रो आदेश ।।158।।

दुत भेज इम दाखिया ,  दियण शुभ समाचार 
।।
राजी हुय मन राजवी , इम कर हरख अपार ।।159।।

अज सुत प्रोळै आवियो , दशरथ भूप दयाल ।।
वाजा मंगल  वाजतां , हुई प्रजा खुशहाल ।।160।।

वधाय ले गये विप्र कूं , दशरथ बिच दरबार ।।
दे आसन इम द्विज का , छत्रपत कर सत्कार ।।162।।

आसन बैठा आयके , गजब लोक गुणवान ।।
महिपत दशरथ बीच में ,जिका बिराजे जान ।।163।।

आप सदानन्द आयके , परथम किय परणाम ।।
दसरथ नृप आसन दियो ,  तिण पळ रीत तमाम ।।164।।


कर हरख सदानंद कहि , सुनहू आप सुजाण ।।
भूप जनक मों भेजियो , वा मैं करूं वखाण।।165।।

शुभ यों लगन लखायके , महीप भेज्यो मोय ।।
सारो प्रसंग  सांभळै , हरख अवधपुर होय ।।166।।

सांभळै प्रजा सघळी , करवा लागी कोड ।।
उछरंग करण अवध में , हर जन लागी होड ।।167।।

 अवधपुरी रे आँगणें  , परम भयो परकाश ।।
गळी नगर सब गुंजेया , होवत रदे हुल्लास ।।168।।

भूप दियो मनभावतो , इम दसरथ उपहार ।।
दिया हयवर दोकड़ा , कनक मोहर कळदार  ।।169।।

समप घणो धन सोवणो , भयो खुशी मन भूप ।।
द्विज आशीष यों दिनी ,रंग नृप कुळ रूप ।।170।।

धिन धरपत दशरथ धणी , द्विज आशीष युं देय ।।
चित्त हरखाय चालिया , लुळकर आज्ञा लैय ।।171।।

उत्तम दिन मुहरत इसो , वेळा शुभ धिन वार ।।
आप जनकपुर आवजो ,
सजे जांन शिणगार ।।172।।

जोड़ सरीखा जांनिया , भल लाईजो भूप ।।
इम चारों वर ओपता , राम सरीखे रूप ।।173।।

वाह कहे धिनवाद दे , विध पकड़ी गुर वाट ।।
मिथिला सरखो मुलक में , थरू अजोधा थाट ।।174।।
के
किणविध म्हें शोभा कहूं , नगर अजोधा नाथ ।।
इत दरिया अपणास रो , सदा बहे इक साथ ।।175।।

जनक भूप हैं जेहड़ो , अहड़ो दसरथ आप ।।
दोय सगा जो देश में , थिर धर थाप उथाप ।।176।।

राजी हुय गुर राह ली , द्विज मिथिला देश ।
कहूँ जाय मिथिलेश को , शुभ सारो संदेश ।।177।।

भल भल दशरथ भूप हैं , पुनि धिन ता परिवार ।।
धिन अजोधा धाम रा , नित नांमी नर नार ।।178 ।।

बाग बगीचा बोहळा , बोहळी नगर बजार ।।
फाबे हैं धिन फूटरी , अजोधा छवि अपार ।।179।।

कद जाकर सगळी कहूँ ,   जनक भूप को जांण ।।
धिन्न अजोधा धांम रा , विध विध करूँ वखांण ।।180।।
मीठा मीर डभाल


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