श्री राम सुयश दोहावली (भाग 11)
शुभ पळ जोशी शोधके , देत लिखे दिखलाय ।।अवधपुरी सूं उण दिवस , इत जान भल्ल आय ।।151।।दिन उत्तम उत्तम घड़ी , पळ उत्तम परमांण ।।अवधपुरी सूं आवसी , जान जिका दिन जांण ।।152।।बात सुणे इम बोलियो , जनक विदेही जान ।।झट विप्रवर अब जावणो , मों तणो रक्ख मान ।।153।।जनक कहे सो जानिके , लीजै लगन लिखाय ।।सदानंद गुर साथ में , जाणो हुय सो जाय ।।154।।सहविध हय दळ शोभतो , (अरू), लिया संग में लोग ।।चित हरखावे चालिया , शुभ अवसर संजोग ।।155।।सगळा हिलमिळ चाव सूं , जिका अवध दिश जाय ।।सगा दोय धिन सारखा , कुळ भूषण कहलाय ।।156।।अवधपुरी जद आविया , सदानंद कर चाव ।।छवि निरखै सोयांमणी , भयो खुशी मन भाव ।।157।।आय प्रोळ ढिग अवध में , दीन्हो शुभ संदेश ।।दशरथ जी झट दीजियो , आवण रो आदेश ।।158।।दुत भेज इम दाखिया , दियण शुभ समाचार।।राजी हुय मन राजवी , इम कर हरख अपार ।।159।।अज सुत प्रोळै आवियो , दशरथ भूप दयाल ।।वाजा मंगल वाजतां , हुई प्रजा खुशहाल ।।160।।वधाय ले गये विप्र कूं , दशरथ बिच दरबार ।।दे आसन इम द्विज का , छत्रपत कर सत्कार ।।162।।आसन बैठा आयके , गजब लोक गुणवान ।।महिपत दशरथ बीच में ,जिका बिराजे जान ।।163।।आप सदानन्द आयके , परथम किय परणाम ।।दसरथ नृप आसन दियो , तिण पळ रीत तमाम ।।164।।कर हरख सदानंद कहि , सुनहू आप सुजाण ।।भूप जनक मों भेजियो , वा मैं करूं वखाण।।165।।शुभ यों लगन लखायके , महीप भेज्यो मोय ।।सारो प्रसंग सांभळै , हरख अवधपुर होय ।।166।।सांभळै प्रजा सघळी , करवा लागी कोड ।।उछरंग करण अवध में , हर जन लागी होड ।।167।।अवधपुरी रे आँगणें , परम भयो परकाश ।।गळी नगर सब गुंजेया , होवत रदे हुल्लास ।।168।।भूप दियो मनभावतो , इम दसरथ उपहार ।।दिया हयवर दोकड़ा , कनक मोहर कळदार ।।169।।समप घणो धन सोवणो , भयो खुशी मन भूप ।।द्विज आशीष यों दिनी ,रंग नृप कुळ रूप ।।170।।धिन धरपत दशरथ धणी , द्विज आशीष युं देय ।।चित्त हरखाय चालिया , लुळकर आज्ञा लैय ।।171।।उत्तम दिन मुहरत इसो , वेळा शुभ धिन वार ।।आप जनकपुर आवजो ,सजे जांन शिणगार ।।172।।जोड़ सरीखा जांनिया , भल लाईजो भूप ।।इम चारों वर ओपता , राम सरीखे रूप ।।173।।वाह कहे धिनवाद दे , विध पकड़ी गुर वाट ।।मिथिला सरखो मुलक में , थरू अजोधा थाट ।।174।।केकिणविध म्हें शोभा कहूं , नगर अजोधा नाथ ।।इत दरिया अपणास रो , सदा बहे इक साथ ।।175।।जनक भूप हैं जेहड़ो , अहड़ो दसरथ आप ।।दोय सगा जो देश में , थिर धर थाप उथाप ।।176।।राजी हुय गुर राह ली , द्विज मिथिला देश ।कहूँ जाय मिथिलेश को , शुभ सारो संदेश ।।177।।भल भल दशरथ भूप हैं , पुनि धिन ता परिवार ।।धिन अजोधा धाम रा , नित नांमी नर नार ।।178 ।।बाग बगीचा बोहळा , बोहळी नगर बजार ।।फाबे हैं धिन फूटरी , अजोधा छवि अपार ।।179।।कद जाकर सगळी कहूँ , जनक भूप को जांण ।।धिन्न अजोधा धांम रा , विध विध करूँ वखांण ।।180।।मीठा मीर डभाल
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