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नाराच छंद सूर्य वंदना, surya vandana


               नाराच_छंद_सूर्य_वंदना







#सूर्य_वंदना_काल़िया_रा_संबोधनी_सोरठा
वंदन कर विख्यात, जगत-तात!जगदीश नें।
प्हैली ऊठ'र प्रात,काछपसुत भज काल़िया।१
अवनि भरण ऊजास, नँह चूके नित ऊगणो।
सदा रथिन-सपतास!,काछपसुत भज काल़िया।२
भास्कर आदित भांण, मित्र मिहिर मार्तंड वल़।
करवा जग कल्यांण, कायम ऊगे काल़िया।३
दिनकर देव दिनेश,किरणमाली अंशु -सहस।
वरदानी विश्वेश,काछपसुत भज काल़िया।।४
रंक हुवे या राव, जड चेतन हर जीव पर।
करे किरण छिड़काव, काछपसुत नित काल़िया।५
देखे हेकण दीठ, पापी धरमी पुहुमि रा।
प्रतख जगत वड़ पीठ, काछपसुत नित काल़िया।।६
जात धरम अर जीव, लेश भेद चित ना लहे।
समता रखे सदीव, काछपसुत नित काल़िया।७
ऋतुकरता दिनराज, लाज रखे दु:ख भांज दे।
सदा भरे सुखसाज, काज आपणें काल़िये।८
समदरसी हिक सूर, नर नारी चित भेद नँह।
नित बरसावे नूर, काछपसुत बस काल़िया।।९
ज्योतिष!जगत-जहाज!,गतिमय! ज्योतिर्मय! गुणी!
विचरण-रथ-सत-वाज!,काछपसुत नित काल़िया!!१०


    नाराच_छंद_सूर्य_वंदना_

हिरण्यगर्भ!भानु!हंस भास्करं दिवाकरं।
सवितृ अर्क त्वष्ट सूर्य लोकपाल सुंदरं।
गभस्तिमान चंडरश्मि वेदपूजितं वरं।
प्रसीद मित्र हे पवित्र!पुत्र काश्यपं परं।।१

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