दोहावली भाग- 2
श्री राम सुयश दोहावली भाग- 2
हरि तव किरपा होवतां , पंगू चढ़े पहार ।।
श्रवणे बहरां सांभळे , अंधहु दिसै अपार ।।16।।
गिरा ईश गुण गावतां , उर म्हें वधे उमंग ।।
कौशल सुत दसरथ कुंवर , राम सीतपत रंग ।।17।।
रामायण वाल्मिक रच , मानस तुलसी मान ।।दोहां में लिख दाखणो , राम तणो गुणगान ।।18।।
भारत के भू भाग में , अहड़ो शहर अनूप ।।
भांण वंश के भूपती , रघुवंशी कुळ रूप ।।19।।
अवध नगर शोभा असी , भलविध यों मन भाय ।।
देखण रे कज देवता , इन्द्र पुरी सुं आय ।।20।।
रंग जहां के राजवी , नीतिवत गुण निधान ।।रेण दिवस हिळमिळ रहे , सबेही एक समान ।।21।।
मन ऊजळ दशरथ महा , रघुकुळ अनमी रूप ।।
परम नीतिवत पाटपत , भलपण वंको भूप ।।22।।
राजा रे त्रय रांणियां कौसला प्रिय कहाय ।।
सुमित्रा कैकय सारखी , भूपत रे मन भाय ।।23।।
भूपत मन संशो भयो , इण कज हुओ उदास ।।
कुळ दीपक रे कारणें , आप गयो कर आस।।24।।
दशरथ मन री दाखवी , रिषी कने इम रांण ।।
पूत रतन को पांमवा , जिका दिजे वर जांण ।।25।।
भूप अरज इम भाखतां , दियो रिषी फल देख ।।
जा घर वांट जिमाविये , लाभ हुवे सत लेख ।।26।।
हरखे दशरथ हाथ सूं , आय दियो फळ ऐम ।।
हिय राजी हुय हेत सूं , जिका लीजिये जेम ।।27।।
वेद भाग कर वांटियो , तिण पळ में फळ तेह ।।
राजी हुय इम रांणियां , जीम लियो फळ जेह ।।28।।
ता फळ के परताप ते , सुतन जनमिया चार ।।
धिन्न अजोधा धाम में , बही युं खुशी बहार ।।29।।
निरखत कौशल नन्द को , मन ही मन मुसकात ।।
जोड़ी ओपत जगत में , भलविध चारों भ्रात ।।30।।
मीठा मीर डभाल
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