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कृष्णावतार के दोहे


 
 *कृष्णावतार के दोहे* 




आफत आयां इल्ल  पर,ईशर लै अवतार।
अवतरै प्रभू आप ही ,भोम उतारण भार।।1।।

कंश काळ नै कापणै ,पाटण जगरो पाप।
धर्म रक्खण धरा तणो,अवतरे कृष्ण आप।।2।।

दुष्टी नारी देखनै,आतां ही अवसाणं।
प्रभुजी मारी पूतना,पूरो चूसै प्रांण।।3।।

मार्या राकस मोकळा,पटके देत पछाड़।
अंत कियो आंतक रो,रुडी़ मिटाई राड़।।4।।

कियो विन्नास कंश रो, दुष्टि नै दंड देत।
पाप हर्यो पृथी तणो,हरि भगतां रै हेत।।5।।

नाथे काळिय नाग नै , जमना भीतर जाय।
आए हँसते आप ही , हरि हर जन हरसाय।।6।।

अहम मेट्यो इन्द्र तणो,अंगुली गिर उठाय।
बारा मेघां बरसतां,वृज नैलियो बचाय।।7।।

पत रखी पँचाळी तणी,अनंत चीर उपाय।
अंग न उघड़्यो उण रो,दुशासन दटकाय ।।8।।

शंकट्ट सुदामै तणो, प्रभु मेट्‌यों भरपूर।
कियो क्षण में करोड़पति,दाळध करनै दूर।।9।।

सारथी बणै सखा तणो,पाळत पावन प्रीत।
पछ पाळ पांडवां तणी,जुध में कराइ जीत।।10।।

पाँण जोड़ मधुकवि पुणै,माधव राखै मान।
समाड़ो रहे सांमळा,ध्याऊ नित कर ध्यान।।11।।



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