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श्री राम सुयश दोहावली भाग 5
कुंवरी सीता कारणें , जनक कियो भल जाग ।।
स्वयंवर देखण सही , आया भूप अथाग ।।61।।
सगळे जग आ सांभळी , वसुधा सर आ वात ।।
मिथिला नगरी मांयने , अधपत कै भड़ आत ।।62।।
सोचे मन में चालया , जोवण मिथिला जाग ।।
जोड़ी फबसी जगत में , सीता तणो सुहाग ।।63।।
मारग में इक मूरती , रिख सह देखी राम ।।
इसी मनोहर ओपती , करी किणे कीं काम ।।64।।
रिषीवर कही राम को , अहिल्या इक अनूप ।।
इन्दर इण कज आवियो , रिझयो देखे रूप ।।65।।
कन्त कियो जद क्रोध हैं , निरखे दोष ज नार ।।
इण दारा रो आज सूं , नेह न मोय लगार ।।66।।
रिख गौतम श्रीरामजी , सो झट दियो श्राप ।।
पांण तणी आ पूतळी , अब निरखो हो आप ।।67।।
हंसन लगे हरि हिय में , अजब बात सुण ऐह ।।
पग लगावे पारखूँ , दिसेह सखरी देह ।।68।।
पग रज लागत पूतळी , नवल बणी ओ नार ।।
श्री राम के चरण ते , उणरो हुओ उद्धार ।।69।।
अहिल्या तार अवधपति , आगे चाल्या आप ।।
अबे घटाणो हैं अवस , पिरथी सर सूं पाप ।।70।।
संग रिषी ले चालिया , दशरथ रा सुत दोय ।।
जनक पुरी दिश जोवतां , हरख घणेरो होय ।।71।।
सगरी नगरी शोभती , ऐहड़ी छवि अनूप ।।
पुरी सात में परम पुनि , रही मनोहर रूप ।।72।।
हद बोहो तोरण हेम रा , जवाहिर नंग जड़ाय ।।
सजाई मिथिला सगळी , विधहु मंडप वणाय ।।73।।
उत्त रिषी ले आविया , सुरज वंश सिरताज ।।।
मन हरखांणा महपती , आपस में मिळ आज ।।74।।
आप जनक इळा उपरे , अधक कियो उछरंग ।।
मंडप छायो मोतियां , देख हुवे सब दंग ।।75।।
- मीठा मीर डभाल
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