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श्री माँ सायर करणी का रक्षा कवच sayar maa rakhsha kavach lyrics Karni Mata Chirja Lyrics करणी माता चिरजा लिरिक्स

Karni Mata Chirja Lyrics 

करणी माता चिरजा लिरिक्स


महिमामयी भगवत्ती  

        श्री माँ सायर करणी  का

                           रक्षा कवच                                                                                        





        इसको सच्चे भाव नित्य पाठ करने से                       
     सभी आपदाओ से  हमारी रक्षा  करता है ।

             ।। जय माँ सायर करणी ।।
      
                   ।। रक्षा कवच ।।

                        ।। दोहा ।।

                              1
अबखी पुळ अबखी घडी,हाज़िर विपद हज़ार ।
उण  संकट   में  आपरी,  करणी  सायर   कार ।
                              2
देश  प्रदेशा  रात  दिन,  पग  धरतां  घर   ब्हार ।
जांणि अजांणी सब जगा, करणी  सायर  कार ।   
                              3              
उण्डा   पाणी     उतरतां,   नद्दी    नाळा   पार ।
पग डिगतां बिखमी वखत, करणी सायर कार ।
                              4
साँप बिच्छुँ गर गौहिरो, फण  जहरी  फुफकार ।
जाड़ा   डाढ़ा  जकड़तां, करणी   सायर   कार ।
                              5
मंत्र  मूठ    डर   डाकणी,  भूत  प्रेत  भय भार ।
आफत   नेंड़ी   आवतां,  करणी  सायर   कार ।
                              6
बाघ सिंह करि विकटवन,अहि विषधरअणपार।
आडा    मारग   आवतां,  करणी   सायर  कार ।
                              7
रिपु  सबळा  रण  मायनें, बहतां  खग  बौछार ।
प्रतख काळ  पल पाव में, करणी  सायर  कार ।
                               8
आधि व्याधि तन  आपदा, तीन ताप भय चार ।व्यापत विविध विकार विष,करणी सायर कार । 
                               9
सोवतं  जागतं  ऊँघतां,  अरियां   वार   अपार ।
घात    अचानक   घालतां, करणी  सायर कार ।
                             10
चौकी  चाँकी   कुन्डियों, पग  पडतां  उण बार ।
तंत्र   मंत्र   तन   घात  में,  करणी  सायर  कार ।
                              11
घाटां  बाटां    गुजरतां, गाढ़   बाढ़  जळ   धार ।
कड़ा  गड़ा  मैह  बीजळी, करणी  सायर  कार ।
                              12
ताव  डैरूं  तन  मान्दगी,  वाळा   छाळा   वार ।
तन  हड़क्यों  मुख  तोड़तां, करणी सायर कार ।
                              13
वाहन   चढ़तां    उतरतां,   दुरघटना    दुसवार ।
आडि  अचानक  आपदा, करणी  सायर  कार ।
                              14
लाय  लगत धर  धसकतां, बम  गौळा  बौछार ।
अबखी  बेळा  उण  वखत, करणी सायर कार ।
                              15
खौटां   ग्रह   बोदी    दशा ,  दाळिदर   दुसवार ।
इण सब  आड़ी  आपरी, करणी   सायर  कार  ।
                              16
चोरी  जारी   वाद  भय,  दुविधा   राज   दुवार ।
दाह  विद्युत  जल  डूबतां, करणी  सायर  कार ।
                              17
अकाळमौत दुर्दिन अखिल,पीड़ा विविध प्रकार।
सदा   रुखाले    सेवकां,  करणी   सायर  कार ।
                              18
क्रूर  क्रोध  हद  लोभ मद, चिंन्ता चित्त विकार ।
आडी   कूमत   आपरी,  करणी   सायर  कार ।
                              19
तात  मात   बन्धु   बहन,  सुत   दारा  परिवार ।
सरब  रुखाळी  है  सदा,  करणी   सायर  कार ।
                              20
पाठ  करे  नित  प्रेम  सुं, धर  चरणा  में  ध्यान ।
किनिंयाँणी रक्षा करे,(माँ जिमवारि निज जाण ।
                              21
शरणागत  “शिवदान”  रे, उर  नहँचौ अणपार ।
रात दिवस  निरभय  रहां, काढ़  मात  री  कार ।

                     ।। छप्पय ।।

करणी   सायर   कार,  रक्षा    कवच    कहीजे ।
करणी   सायर  कार, काढ़ कर निरभय रहिजे ।
करणी   सायर   कार,  काया     कष्ट    कटावे ।
करणी   सायर   कार,  सकळ  संताप   नशावे ।
परथम  कर  यह  पाठ  नित  फिर, 
                           घर   बाहर    पग   दीजिये ।
नचीत  होय  “शिव”   निज   मना, 
                         सफल    मनोरथ    कीजिये ।

                       
   कामदार सा. श्री शिवदानसिंह जी हापावत   
                   श्री करणीकौट
      
         🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
*॥ जय मां ज्वाला ॥*



                 *॥ छंद :~ रूप मुकुंद ॥*


गंग तरंग प्रवाह चले, तो कूप को नीर पीयो न पीयो.
जा'के ह्रदय रघुनाथ बसे, तो ओर को नाम लीयो न लीयो.
कर्म संजोगे सुपात्र मीले तो, कुपात्र को दान दियो न दियो.
कवि गंग कहे सुन शाह अकबर, मुरख मित्र कीयो न कीयो. ०१

जा दिन से यदुनाथ चले, व्रज गोकुल से मथुरा गीरधारी.
ता दिन से व्रज नायीका सुंदर, रंपती जंपती कंपती प्यारी.
वाही के नैनन से सरिता भइ,
शंकर शीष चले जलधारी.
कवि गंग कहे सुन शाह अकबर, ता दिन से यमुना भइ काली. ०२

एक बुरो प्रेम को पंथ , बुरो जंगल में बासो.
बुरो नारी से नेह बुरो , बुरो मुरख में हंसो.
बुरो सूम की सेव , बुरो भगिनी घर भाई.
बुरी नारी कुलक्ष , सास घर बुरो जमाई.
बुरो ठनठन पाल है बुरो, सुरन में हंसनों.
कवि गंग कहे अकबर, सुनो एक सबते बुरो माँगनो. ०३

 गरजे ही अजृन हिजडो भयो, अरु गरजे ही गोविंद धेंन चरावे.
गरजे ही द्रौपदी दासी भइ, अरु गरजे ही भीम रसोइ पकावे.
गरज बुरी सब लोकनमे, गरज बिना कोइ आवे न जावे.
कवि गंग कहे सुन शाह अकबर, यहां गरजे ही बीबी गुलाम रिझावे. ०४

तारेकी ज्योतमे चंद्र छूपे नहि, सूर्य छूपेनहि बादल छायो.
रणे चड्यो राजपुत छूपेनहि, दाता छूपे नहि मांगन आयो.
संचल नारीका नेन छूपे नहि, प्रित छूपे नहि पिठ दिखायो.
कवि गंग कहे सुन शाह अकबर, कर्म छूपे नहि भभुत लगायो. ०५

रतीबीन राज रतीबीन पाट, रतीबीन छत्र नहि एक टीको.
रतीबीन साधु रतीबीन संत, रतीबीन जोग न होय जतीको.
रतीबीन मात रती बीन तात, रतीबीन मानस लागत फिको.
कवि गंग कहे सुन शाह अकबर, एक रतीबीन एक रतीबीन एक रतीको. ०६


*कवि :~* गंगाधर राव ( बारोट देव )...




।। माँ सायर सर्वम् मम: ।।

                      ।। दोहा ।।

साय  रहे  निज सेवकां, अबखी पुळ झट आय ।
इण कारण रिधु आपरो,(माँ) सायर नाम सुहाय।

                       ।। सवैया ।।

सायर मात नमो सुख सागर,
                          आगर हे अणपार कृपा को ।
दीन दयाल  विशाल बडोपण,
                          पार नही जिणरी प्रभुताको ।
नैनन नैह अमी अवलोकत, 
                       बाळ निहाळ करे जस जांको ।
बीस भुजाळ रहे रिछपाळ तो  
                        बाळक बाल करे कुण बांको ।

                      ।।  सोरठा ।।

कांई  बिगाड़े  काळ, बाल न  बांको  कर सके ।
रहे  जिणरें  रिछपाळ,  रात  दिवस  रतनासदू ।




।।  माँ  हिंगळा नमोस्तुते    ।।
              
                       ।।  दोहा  ।।

आद   सनातन   ईशरी, सगत  सरब  सिरताज ।
विश्ववन्द्य    वरदायनी,  नमो   मात   हिंगलाज ।

दाय आवे  ज्युं  कर  दया, राखौ   शरणे   राज ।
लज्जा  म्हारी   लाखविध,  है  थांने  हिंगलाज ।

                       ।। सवैया ।।

लाज रखो हिंगलाज दयानिथ 
                      राज निवाज सभी सुख  साता ।
तात तुही मुझ मात तुंही  तुहि
                      भ्रात सखा अरु भाग्य विधाता ।
जीव अधार तुंही मुझ कैवल 
                            तारणहार तु ही भव त्राता ।
सात हि दीप अधीप नमो जय
                            आद सनातन है जगमाता ।
                      
                        ।। दोहा ।।

नशौ अमर निज  नाम रो, बगसो  हियै  बिराज ।
आजीवन  उतरै   नहीं,   हिरदै  मों   हिंगळाज ।

वही   सनातन   मातपण, वो ही  हैत  मिजाज ।
वहि करुणा बडपण वही, हिरदे  माँ  हिंगलाज ।


             विनीत:- जयसिंह सिढ़ायच
                     मण्डा  राजसमन्द



*माँ करणीजी के समस्त भगतजनो को श्री करणी मंदिर देशनोक के कपाट भगतजनो के दर्शनार्थ खुलने की हार्दिक बधाई हो सा।भगवती करणीजी सभी की मनोकामना पूर्ण करें यही अरदास करता हूँ सा सादर जय माताजी री सा।।*

करत याद मां करनला,पल में सुण फरियाद।
अवलंब आवै आवड़ा,माजी रख मरजाद।।

ईड़ा पीड़ा ईसरी,सगळा मेट संताप।
कस्ट हरै मां करनला,जपियां मन सूं जाप।।

आपै मेटे ईसरी,देवी दयानिधान।
ईड़ा पीड़ा आवड़ा,करणीजी किनियाण।।

निज मंदिर रा करनला,खुलिया आज कपाट।
श्रद्धालु अब सांवठा,जबरा देसी जात।।

अजय सूत अभिमनवा,पुगो पौर परभात।
दरसण करनै देवरे,मोटी करनल मात।।

अजयसिंह राठौड़ सिकरोड़ी।।



मुझे ठीक से याद नहीं है कि मैने कब पढा था *पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय *ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय* 
अब पता लगा ये ढाई अक्षर क्या है-

ढाई अक्षर के ब्रह्मा
और ढाई अक्षर की सृष्टि।
ढाई अक्षर के विष्णु
और ढाई अक्षर की लक्ष्मी।
ढाई अक्षर के कृष्ण
और ढाई अक्षर की कान्ता।(राधा रानी का दूसरा नाम)

ढाई अक्षर की दुर्गा
और ढाई अक्षर की शक्ति।
ढाई अक्षर की श्रद्धा
और ढाई अक्षर की भक्ति।
ढाई अक्षर का त्याग
और ढाई अक्षर का ध्यान।

ढाई अक्षर की तुष्टि
और ढाई अक्षर की इच्छा।
ढाई अक्षर का धर्म
और ढाई अक्षर का कर्म।
ढाई अक्षर का भाग्य
और ढाई अक्षर की व्यथा।

ढाई अक्षर का ग्रन्थ,
और ढाई अक्षर का सन्त।
ढाई अक्षर का शब्द
और ढाई अक्षर का अर्थ।
ढाई अक्षर का सत्य
और ढाई अक्षर की मिथ्या।

ढाई अक्षर की श्रुति
और ढाई अक्षर की ध्वनि।
ढाई अक्षर की अग्नि
और ढाई अक्षर का कुण्ड।
ढाई अक्षर का मन्त्र
और ढाई अक्षर का यन्त्र।

ढाई अक्षर की श्वांस
और ढाई अक्षर के प्राण।
ढाई अक्षर का जन्म
ढाई अक्षर की मृत्यु।
ढाई अक्षर की अस्थि
और ढाई अक्षर की अर्थी।

ढाई अक्षर का प्यार
और ढाई अक्षर का युद्ध।

ढाई अक्षर का मित्र
और ढाई अक्षर का शत्रु।

ढाई अक्षर का प्रेम
और ढाई अक्षर की घृणा।

*जन्म से लेकर मृत्यु तक*
*हम बंधे हैं ढाई अक्षर में।*
*हैं ढाई अक्षर ही वक़्त में,*
*और ढाई अक्षर ही अन्त में।*
 *समझ न पाया कोई भी*
*है रहस्य क्या ढाई अक्षर में।*

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