दीवाळी री खंमा घणी ।।
लाभ लोभ सुख लालच लिछमी घण खांत कमाकर लावणियां नें दीवाळी री खमां घणी ।
रिस्वत रोप खोफ जमाकर कूड़ कपट लूट धन लावणियां ने दीवाळी री खंमा घणी ।
समाज सिरोमण सज राज नेता कमीसन रो धन कमावणियां नें भी दीवाळी री खंमा घणी ।
वोपार वेसभूसा बण वाणिक जन जस जनता वस रुपिया राखिणया नें दीवाळी री खंमा घणी ।
अफसर साख जमाकर आक्कड़ धोकर सुं पिसा घमकाणियां नें भी दीवाळी री खंमा घणी ।
मेहनत मजदूरी रख मोबत अपणी टाबरिया री टेक निभावणियां नें दीवाळी री खंमा घणी ।
लूगाई री ललकार सुं लचकणियां अर मात पिता री नी मानणियां नें भी दीवाळी री खंमा घणी ।
पी दारूं करे पखाला पल पल पलटणिया कळह रे किरतारां नें भी दीवाळी री घणी खंमा ।
मास मद अर मांणसियां रो खून चुसणिया उण पापी खूंखारा नें भी दीवाळी री खंमा घणी ।
सत संगत रा साचा संत सकवी सेवक सुख प्रेम रस रा सागरियां नें दीवाळी री खंमा घणी ।
अपणी वात ऊंची राखण सारू जौर जमावण वाळा जागीदारा ने भी दीवाळी री खंमा घणी ।
सबरो साथ निभा कर जन साथी परमारथ रा पुजारी साचा सिरदारां नें दीवाळी री खंमा घणी ।
आछा वात उचारणिया अर अम्ब वात वरताव वायक रा विदवानां नें दीवाळी री खंमा घणी ।
आम्बदान जवाहरदान देवल आलमसर
दीप बन तिमिर जिगर से हटाइए।
आडम्बरों से जी नहीं आलम
तपाइए
जरुरतमंद के लिए दो जून की रोटी
मिलती हो पसीने से वो दौलत कमाइए
स्नेह की सरिता यहां दिल से बहाइए
पर कुटिलता से जरा सा दूर जाइए
नीची हो निगाहें जहां औरों के सामने
अरबों की मिल्कियत को वहीं ठुकराईए।।
वीरेन्द्र लखावत कृत
आप सब को हृदय की अतल गहराई से रूप चतुर्दशी दीपोत्सव गौवरधन पूजा भाई दूज की शुभकामनाएं।
दीपावली की आप सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें।
महालक्ष्मी की कृपा दृष्टि आप सभी पर बनी रहें।
*पढ़े मेरी यह रचना।*
. *दीपावली*
. *कविता*
दीवाली पर्व को मैं द्वार तुम्हारे*
धन, हर्ष, व रंगरोचन लायी हूँ|
अनुयायी धर्म हिन्दुवास हैं मेरा,
सांस्कृतिक प्रदायी प्रकरण ही हूँ ||
उद्गम न्यारे हैं इस धरा पर मेरे,,
निवास रंग-रोंगन गृह किया सवेरा |
मैं मलयानिल मैं सुक्ष्म जीवों का,
पटाखे की गंध से नाशक हूँ मैं शेरा ||
राजाराम के वनवास से लौटकर,
अयोध्याविसियों के हर्ष की पर्व हूँ |
कार्तिक मास की सघन काली ,,
अमावस को रोशनी से जगा उठी हूँ ||
मैं अहंकार, पाप का विनाश कर,
मैं पाप पर धर्म की जीत दिलाती हूँ |
वैद्यराज व यमराज के लिए दीप,,
प्रज्ज्वलित आरोग्य,दीर्घायु लायी हूँ ||
*दीवाली पर्व को मैं.. .. ………
रोग, अकाल मृत्यु के भय की,
मैं दीवाली पर अनेक अर्चनाकारी हूँ|
कुबेर निमित्त दीपदान कराकर,
मैं कुबेर धन की अवतारी हूँ ||
घर -परिवार में खुशहाली लाकर,
मैं धन-समृद्धि लक्ष्मी रूप निहारणी हूँ|
विघ्न विनाशक मंगल हरणकारी की,
पूजा कराकर मैं ही मंगलकारणी हूँ ||
इसी रात्रि को दीपों के प्रकाश से,
अंधेरे में प्रकाश लाने वाली दीवाली हूँ |
मन, वाणी, कर्म व साधना को ,,
धन से बदलाती ऐसी धनाली हूँ ||
मैं महानिशीय काल महाकाल रात्रि,
लक्ष्मी पूजा करते उनके घर आयी हूँ |
*दीवाली पर्व को मैं…. … .. .. .. ..
महालक्ष्मी पूजन में गणपति, शारदा,
महालक्ष्मी साथ विराज आरती करते।
श्री गणेश, महालक्ष्मी, ग्रह सभी देव,
सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य धन वृद्धि देते।।
कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा मैं,
गोवर्धन पूजा कराकर सुखदायी हूँ |
गोवर्धन पूजा व पशुधन की पूजा ,
कराकर मैं सुख समृद्धि लायी हूँ | |
मिट्टी का दीप जलाकर वसुधा,
को प्रसन्न कर मैं लक्ष्मी आती हूँ |
मिट्टी के दीप से देवताओं, नवादि
गृहों की पूजा कराकर मनाती हूँ | |
विश्वकर्मा जी के निमित्त दीपदान,
कराकर टूट-फूट से घर बचाती हूँ |
चित्रगुप्तजी की दीप पूजाकराके ,
आय, धन की प्राप्ति लिखायी हूँ ||
*दीवाली पर्व को मैं… … ………… .
मैं दीवाली का यह पर्व लाकर तुम्हें,
अनेक पुजाओ का पाठ सिखाती हूँ |
भाईदूज पर बहना को यमुना तट पर दीप-दान से दीर्घजीवन कामना कराती हूँ|
भाई का सुख दीर्घकाल रहें इसलिए ,
बहना से भाई की मन्नत करवाती हूँ।
मैं हर्षोल्लास का संचरण कराकर,
हर घर मैं दीवाली का सुख लाती हूँ।।
मैं शरद ऋतुओं के आगमन में दीप,
जलवाकर सुखमय कामना करवाती हूँ।
चपला करो घर मन को चंचल,,
रणदे माँ तेरे धन कृपा का प्रार्थी हूँ।।
आप धनकारी शुभ,परम् निवासी श्री,,
पधारों मुझ घर अर्चन का अध्यायी हूँ।।
*दीवाली पर्व को मैं द्वार तुम्हारे*
*धन, हर्ष, व रंगरोचन लायी हूँ|*
रणजीत सिंह चारण "रणदेव"
मुण्डकोशियाँ राजसमन्द
आपको व आपके पूरे परिवार को दीपों के पर्व दीपावली की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ-
मन चाही चीज़ों मिलै
पुरुषार्थ रे पांण।
हेत बढ़े हरिनामसूं
जद दीवाळी जांण।।
सदगुण सगला सीखजो
खरा गुणां री खांण।
मुगती रो मारग मिलै
जद दीवाळी जांण ।।
समाज घर सरकारमें
कायदो घटै न कांण।
प्रेम बढै परिवारमें
जद दीवाळी जांण।।
मिलनै करो मुकाबलो
तगड़ा तरकस तांण।
दालद दुख सब दूरवे
जद दीवाळी जांण।।
शत्रुओं ने सीखदे
रांगड़ कविजन रांण।
भारत भूमि मन भावणी
जद दीवाळी जांण ।।
कोरोना ने कूट काडो
हुवै नहीं किण विध हांण।
सुखी निरोगी वे सभी
जद दीवाळी जांण ।।
जनम सफल कर जातमें
नहीं करणो नुकसांण।
कुळ सारौ अंजस करै
जद दीवाळी जांण।।
सुमिरन सेवा साथमें
भलोज ऊगै भांण।
कविया री शुभ कामना
जद दीवाळी जांण।।
शुभेच्छु- भवानी सिह
*करु प्रणाम करजोङ,रीत प्रित री रखावजो।*
*गरव करै गोविन्द घणौ,निभि ज्योहीं निभावजो।।*
*अपणायत राखी आप ,हिवङै वधायो नित हेज।*
*रामा शामा राज ने, सज्जनां सन्देशों भेंज।।*
🌹🙏🏻🌹
*गोविन्द सिंह चारण (सिऊ)*
अग्रज लघु अंगेज जौ,रामा सामा राज।
हित चित्त ऊंडै हिय सूं , करजो कीरत काज।।
भरम भूल भारिखमा, मूल है मेल मिलाप।
झूल नेह रै झूलणै,तुल तन मन रै ताप।।
नीं स्वारथ नीं कुटिलता, अहम तजौ इणवार।
वहम आपरौ वाळ दौ, नम नम करूं जुवार।।
आ दीवाळी आयगी ,काटण काळ करूर।
दु:ख पाटण दरियाव सो, जोगण आव जरूर।।
विदग विरेन्दर री वळा ,धार हियै धणियाप।
पार लगा जौ प्रीतड़ी, अवस गुणी जन आप।।
आप सगळा हेताळुवां नै दीवाळी रा घणा घणा रामा सामा करूं सा। भूल चूक माफ कर र मान जो सा।
कमल पदम कमलासनी ,
वरी विष्णु वरदान ।
दया द्रष्टि धन दायनी ,
धर्म कर्म सुख ध्यान ।(१)
आरत पाळण आथ री ,
परसे अन धन पाट ।
ग्यान गती गुण गणपती ,
थपती सुख जस थाट ।(२)
लालच लत ललकारती ,
भरती सुबधा भाव ।
कर्मठ बणकर कोडती ,
चंचला तणो चाव ।(३)
हाव भाव भर हरख रा ,
चंचल करती चाल ।
आदान प्रदान अदा ,
निर्णय गती निहाल ।(४)
तृिष्णा भरती तेज री ,
जर जस जपण जरूर ।
कर्मठ बणकर कोडती ,
भाव भरे भरपूर ।(५)
माया विध विध मोकळी ,
चमक दमक चहुछौर ।
जर सुख जीवन जीतवा ,
जचाय लछमी जौर ।(६)
अम्ब तणी अरदास अब ,
साची कर सुरराय ।
सत पत राखण सांतरी ,
मेहर लछिमी माय ।(७)
अबेर सुण अणदे तणी ,
जरा न कीनी जेज ।
बण दंभी अध बीच में ,
करी लाव कवरेज ।(१)
जोड़ डोर तब जौर री,
वणी लाव वरदान ।
कर किरपा करणी करी
देकर जीवन दान ।(२)
अध बिच अणदे आथड़ी ,
लळके तूटी लाव ।
हाय करणी आय हमे ,
दिखे न जीवन दाव ।(३)
दंभी बण कर जोड़ दी ,
डर में जीवन डोर ।
अणदे आरत उणघड़ी ,
करणी चारों कौर ।(४)
अन धन सुख जस आपही ,
जग ओळखाण जौर ।
अम्ब अरज सुख आपणी ,
आप सम नहीं और ।(५)
आम्बदान जवाहरदान देवल आलमसर
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